
(1) देश मे प्रति हेक्टेयर फसल की उत्पादकता बढ़ाने की दिशा में युद्ध स्तर पर तत्काल सार्थक प्रयाश किये जावे वर्तमान में भारत मे राइस की यील्ड 3623 kg प्रति हेक्टेयर है वही चीन में 6710 kg प्रति हेक्टेयर है।
(2)देश मे जिन वस्तुओं की कमी है के एक्सपोर्ट पर एक्सपोर्ट ड्यूटी /टैक्स लगाया जावे तथा
इस एक्सपोर्ट ड्यूटी से प्राप्त राजस्व का उपयोग राइस एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने के लिये सब्सिडी/इन्सेन्टिव देने के लिये किया जावे ताकि Rice एक्पोर्ट देश से इंटरनेशनल मार्किट प्राइस के हिसाब से हो सके ताकि हमारे नेट विदेशी मुद्रा भंडार पर कोई असर न पड़े ।
(3) देश मे किसानों द्वारा उत्पादित एक निश्चित गुणवत्ता की कम से कम 50% सुखी उपज जिसे कम से कम 2वर्ष के लिये भंडारण किया जा सके MSP पर खरीद की गारन्टी का कानून तत्काल बनाया जावे । तथा शेष बचे माल की अंतरराष्ट्रीय बाजार भाव (जो हर 15 दिन में सरकार घोषित करे ) के हिसाब से किसान से खरीद की जावे एवं इस रेट से कम पर किसान से खरीद को अपराध घोषित किया जावे।
(4)किसानों से खरीदी गई उपज का भुगतान 3 दिन में किसान के बैंक खातों में केवल RTGS/NEFT/ECS के माध्यम से करने को गारंटी हो। ताकि किसानों का शोषण रुक सके व उन्हें भुगतान के लिये भटकना न पड़े ।
अगर उपरोक्त सुझाव पर तत्काल अमल किया जाता है तो FCI व खुले असमान के नीचे अनाज के भंडारण में जो नुकसान सरकार को उठाना पड़ता है कि तुलना में सरकारी एक्सपोर्ट सब्सिडी /इंसेंटिव राशि काफी कम होगी ।
जिसे लोग मुफ्त खोरी कहते है वह राइट टू फ़ूड सिक्योरिटी एक्ट के तहत देश के गरीब नागरिक को कानूनी रूप से प्राप्त है।
वर्तमान कोरोना काल में भारत में 80 करोड़ लोगो को इसका लाभ मिल रहा है।
सुझाव
जब ₹30 प्रति किलो के गेहुँ व चावल को सरकार ₹2 प्रति किलो में दे सकती है ।
80करोड़ x₹28X7kg प्रति माह =₹15680 करोड़ प्रति माह (₹ 1लाख 88हजार करोड़ प्रति वर्ष ) खर्च कर रही है
तो किसानों को MSP को गारंटी क्यो नही दे सकती है वर्तमान में गेहूं व चावल के बाजार मूल्य व MSP में एवरेज ₹5 रुपये किलो का ही अंतर है ।
सरकारे वर्तमान में करीब 40% गेहू व चावल MSP पर खरीद ही रही है बाकी भी MSP पर खरीदे तो बचत करीब 10करोड़ टन गेहू व चावल की खरीद में औऱ अतरिक्त 10करोड़ टन x ₹5000 प्रति टन सब्सिडी = ₹50000 करोड़ का ही अतरिक्त बोझ सरकार पर आवेगा ।
ऐसा करने से करीब आधा बोझ तो मार्किट का बेस प्राइस बढ़ने से ही रिकवर हो जावेगा ।
अतः सरकार पर अधिकतम नेट भार केवल ₹ 25000 करोड़ का ही प्रति वर्ष है ।
जिसका लाभ देश की 60% आबादी जो किसान है को मिलेगा ।
और चुकी देश मे 90% किसान मार्जिनल किसान है अर्थात उनके पास 2 हैक्टर से कम जमीन है ।
अतः उनके हितों के लिये इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
जब देश की 60%जनता के हाथों में पैसा आवेगा अर्थात उनकी क्रय शक्ति (पर्चेजिंग पावर) बढ़ेगी तो देश में उद्योग धंधों को अपने आप बूस्ट मिलेगा व देश की अर्थव्यवस्था भी अपने आप मजबूत होना निश्चित है ।