
(1) वर्तमान में MSME की परिभाषा में बढ़ाई गई निवेश व टूर्न ओवर की सीमा को पुनः रिव्यु करने की जरूरत है । नई परिभाषा की कारण करीब 95% उद्योग MSME की श्रेणी में आ गए है जिससे उधोगो के MSME स्टेटस की महतत्ता पूर्णतः समाप्त हो गई है ।
अत: हम मांग करते है कि सूछम व लघु उधुयोगो को और अधिक सुदृढ़ बनाने हेतु अलग से लघु उधोग मंत्रालय गठित करने हेतु तत्काल गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए
(2) ट्रेड व इन्डस्ट्री को बूस्ट देने के लिये GST रजिस्टर्ड डीलर (कंपनियो को छोड़ कर)जिनकी आय 50 लाख से कम है को इनकम टैक्स के 20% व 30% slab में 50% को छूट FY 2022-23 , 2023-24 व 2024-25 तीन वर्षों के लिये भी तत्काल प्रभाव से देने की जरुरत है ।जिससे व्यापारियों को loanable बनाया जा सके । बैंक व अन्य फाइनेंसियल सस्थान लोन देने में अपने आप को कंफर्टेबल महसूस करे।
Loan दे कर ही हम MSME व छोटे छोटे उधोग व व्यापार को और अधिक टैक्स कॉम्प्लाइन्ट व जवाब देह बना सकते है।
(3) NBFC को तत्काल आसान शर्तो पर रिफाइनेंस की सुविधा दी जानी चाहिये ताकि वे उपभोक्ताओ व होम buyers की आसानी से कम ब्याज दरों व आसान EMI पर ऋण /loan उपलब्ध करा सके ।
इस कार्य को पहली प्राथमिकता दी जानी चाहिए कारण बैंक बैसल नॉर्म के कारण आम उपभोक्ता व व्यापारी को जल्दी लोन उपलब्ध करा पाने में सक्छम साबित नही हो रहे है।
बैंको को NBFC से लिंक करना इस लिये जरूरी है क्योंकि भारत में लघु उधोग व ट्रेड व इंडस्ट्री में 70% असंगठित छेत्र में है ।
वहां पर GST के बाद कुछ एकाउंटिंग डिसिप्लिन आना शुरू हुआ है ।परन्तु बैंको को लोन देने के लिये बैसल नॉर्म को फॉलो करना होता है ।अतः बैंक MSME को लोन देने में वर्तमान कानूनों के तहत अपने आप को MSME को लोन देने में सक्छम नही पाते है।
इतिहास गवाह है NBFC ने ट्रकों के फाइनेंस के छेत्र में बहुत ही उत्साह वर्धक परिणाम दिए है और उनका loan रिकवरी / रीपेमेंट भी बहुत ज्यादा अच्छा रहा है ।
इस मॉडल को देश मे MSME सेक्टर को व मुद्रा योजना में loan देने के लिये तत्काल अपनाए बगैर 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था नही बनाया जा सकता है।
(4) हाउसिंग सेक्टर की तरह GST को दरों को @5% बिना इनपुट क्रेडिट के लाभ के commercial निर्माण व सरकारी निर्माण कंस्ट्रक्शन कॉन्ट्रैक्ट पर भी करने की जरूरत है ताकि GST के राजस्व को बढ़ाने के साथ साथ Fake invoicing पर लागम लगाई जा सके ।
(5) Ease of doing Bussines के लिये गैर जरूरी कॉम्प्लाइन्स बर्डन को तत्काल कम करने की जरूरत है ताकि कॉस्ट बर्डन व व्यर्थ में नष्ट होने वाले समय की बचाया जा कर प्रोडूक्टिव कार्यो में लगाया / निवेश किया जा सके । उद्यमी का समय भी एक महतवपूर्ण निवेश के समान ही है।
(6) मजदूरों को रोजगार के नए अवसर नही मिलने का मूल कारण देश के श्रम कानून है व मिनिमम वेज है।
सरकार श्रम कानूनों को आसान बनाये जितने श्रम कानून आसान होंगे सरकार पर मनरेगा का बोझ कम पड़ेगा । वर्तमान में हो ये रहा है कि श्रम कानूनों के कारण अधिकांश उद्योग व व्यवसाय जो लोगो को रोजगार दे सकते है कानूनी झंझटो से बचने के लिये मशीनी करण को ही प्राथमिकता दे रहे है । और मानव श्रम व्यर्थ जा रहा है।
साथ ही देश मे सभी सरकारो ने मुफ्त योजना जोरो से प्रचार प्रसार व विज्ञापन के साथ चला रखी है ।मेरे विचार से अनाज ,उच्च शिक्छा व स्वस्थ सेवाएं मुफ्त की बजाय 90% छूट के साथ ये सुविधाये केवल जिनको हम मनरेगा के तहत भी रोजगार देने में असमर्थ है केवल उन्हीं को दी जानी चाहिये ।
हमे यह भी याद रखना चाहिए की 140 करोड़ की विशाल जनसंख्या वाले हमारे देश मे मानव श्रम का दोहन भी बहुत जरूरी है ।
वरना हम केवल पराजीवी लोगो को फ़ौज खड़ी कर देश को नक्सली ,चोर ,डाकू उग्रवादी का देश बनने की दिशा में बढ़ रहे है। इसपर तत्काल गंभीर चिंतन की जरूरत है।
सुझाव
सरकार को चाहिये की देश मे मानव श्रम का अधिक से अधिक उपयोग हो तो मिनिमम वेज के डिफरेन्स की गैप की ब्रिज फंडिंग / भरपाई सरकार करे ।
जैसे मिनिमम वेज अगर ₹10000/-प्रति माह है परंतु किसी कुटीर उधोय व लघु उद्योग उस श्रमिक को 7000/-ही देकर वायबल हो पाता है तो 7000/ वह उधोग दे व बैलेंस ₹3000/- के डायरेक्ट बेनिफिट योजना के तहत हितग्राही के बैंक खाते में सरकार ट्रान्सफर कर लोगो मे काम के प्रति रुचि पैदा की जा सकती है। व मानव श्रम का सार्थक उपयोग भी ।
ऐसा कर ग्रामीण छेत्र में भी door step पर ही रोजगार के नए अवसर के साथ साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूत किया जा सकता है।