
(1) जब ट्रेड को भी MSME स्टेटस दे दिया गया है तो ट्रेड को भी 45 दिन के भीतर भुगतान प्राप्ति की गारंटी का अधिकार मिलना चाहिये ।
(2)MSME के निवेश व टर्नओवर आधारित डेफिनेशन पर पुनः विचार किया जाना चाहिए। क्योकि देश के 98% उधोग MSME की नई डेफिनेशन में कवर हो गई है। अतः सूक्छम व लघु उधोग को MSME स्टेटस का पूर्ण लाभ नही मिल पा रहा है और वे बीमार होने के कगार पर जा रहे है । अतः हम मांग करते है कि सूक्छम व लघु उधोगो के हितों की रक्छा के लिये अलग से एक लघु उधोग मंत्रालय बनाया जावे । वर्तमान में देश मे कुल औधोगिक रोजगार में 60% सूक्छम व लघु उद्योगों व सेवा संस्थान देते है ।
(3)बैंको के NPA की तरह देश मे ट्रेड व इन्डस्ट्री के जो पैसा बंद /बीमार होने वाले संस्थानों में रुकता है( ट्रेड क्रेडिटर्स व unsecured loan) कि भी रिकॉर्डिंग के लिये एक पोर्टल बनाया जावे ताकि इस राशि की भी गणना की जा सके यह अमाउंट भी बैंको के NPA के समान एक बहुत बडी राशि है ।
ऐसा कर ही हम इसकी रोकथाम के उपाय ढूंढ सकते है ।
(4) सभी लोन एकाउंट होल्डर्स को लोन एकाउंट पोर्टेबिलिटी की सुविधा निःशुल्क दी जावे ताकि बैंको में भी टेलीकॉम कंपनियों के तरह सेवा गुणवत्ता में सुधार लाया जा सके ।
लोन एकाउंट पोर्टेबलिटी के समय प्री क्लोज़र चार्ज व पीनल ब्याज से पूर्ण मुक्ति मिले तथा मॉर्गेज के लिए भी अधिकतम स्टाम्प ड्यूटी ₹1000/ – निर्धारित की जावे ।
(5) वर्तमान में सभी बैंको द्वारा वर्किंग कैपिटल लोन रिनिवल के नाम पर 0.25% से 1% प्रतिवर्ष लिया जा रहा है । इस लूट को तत्काल बंद कराया जावे । इसे MSME के लिये अधिकतम ₹10000/- निर्धारित कराया जावे ।
(6) नए MSME उधोगो को दी जाने वाली सब्सिडी व अन्य लाभ के लिये जिस बैंक ने उधोग को लोन दिया है नोडल एजेंसी बनाया जावे । तथा यह सुनिश्चित किया जावे की कमर्शियल प्रोडक्शन शुरू होने व सब्सिडी एप्पलीकेशन जमा होने के 30 दिन के भीतर यह राशि उधोग के बैंक लोन एकाउंट में जमा करा दी जावे । अगर किसी कारण देरी होती है तो बैंक को उधोग विभाग व्याज व पेनाल्टी का भुगतान डायरेक्ट करें ।,
जैसा कि हम सभी जानते है कि GST मे 1 July 2017 से 30 Jun 2022 तक सभी उत्पादक राज्यो को जो GST लागू करने से राजस्व की हानि होगी उसे केन्द्रीय पूल से कपंनसेशन गारंटी के रूप में राज्यो को जो राशि दी जा रही थी अब 1 जुलाई 2022 से यह राशि इन राज्यो को मिलना बंद हो जावेगी ।
सुझाव
जैसा कि हम जानते है कि कोई भी उत्पादक राज्य राजस्व के मामले में आत्म निर्भर नही हो पाया है ।
उन्हें आत्म निर्भर बनाने व अपने अपने राज्य में उत्पादन गतिविधियों को बढ़ाने हेतु इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनायो में निवेश के लिये काफी बढ़ी राशि की जरूरत है तथा राज्यो में ओधोगिक उत्पाद के लिए निजी छेत्र से निवेश को आकर्षित करने के लिये सब्सिडी के रुप मे देने के लिये बढ़ी राशि की जरूरत है ।
अतः उत्पादक राज्यो को यह अधिकार मिले की वे अपने राज्य में उत्पादित वस्तुओं को केवल दूसरे राज्यों मे निर्यात के समय केवल उत्पादक/निर्माता को 2% विकाश कोष ( Development Fund) IGST मे से सम्बंधित उत्पादक राज्य की अतरिक्त Direct हिस्सा मिले । जिस पर केवल उत्पादक राज्य का अधिकार हो । यह सम्पूर्ण राशि केन्द्रीय पुल के बजाय प्रति माह उत्पादक राज्य जिन्हें वर्तमान में कंपनसेशन दिया जा रहा है direct जावे जिससे उत्पादक राज्य भी आत्म निर्भर बन सके ।