
(1)E-Invoicing की वर्तमान लिमिट ₹20करोड़ से ऊपर के टॉर्न ओवर पर 1-4-2022 से लागू हो गई है । हम सुझाव करते है कि E way बिल को E- invoice से जहाँ पर बायर व consignee एक है (90%केस में बायर व consignee same होता है ) आसानी से रिप्लेस किया जा सकता है ।ऐसा कर डुप्लीकेसी ऑफ वर्क से भी व्यापार जगत की निजात मिलेगी ।
(2)जब E – इनवॉइस पोर्टल पर 2A में दिख रही है उसके बावजूद केवल 2B के आधार पर ही ITC क्रेडिट देना पूर्णत: सरकार की ease of doing बिजनेस की मंशा को मात्र जुमला बना कर रख दिया है । अतः जो E-inovice 2A में दिख रही है उसी समय वे 2B में भी रिफ्लेक्ट हो। व उसका ITR का निर्बाध रूप से ख़रीददार को मिले तत्काल सुनिश्चित किया जाना चाहिये ।
जब GST विभाग को E इनवॉइस पर भी विस्वाश नही है । तो E इनवॉइस को क्यों लागू कर उधोग व व्यापार जगत को क्यो परेशान करने के साथ साथ उसकी कंप्लाइन्स कॉस्ट व बर्डन को क्यो बढ़ाया जा रहा है।
GST लागू होने के बाद छोटे छोटे GST रेगुलर रजिस्टर्ड उधोगो पर भी करीब ₹ 3लाख का प्रति वर्ष अतिरिक्त कंप्लाइन्स cost के साथ साथ कंप्लाइन्स बर्डन भी बढ़ गया है। साथ ही वर्तमान ITC क्रेडिट के नियम बेबजह ख़रीददार की कोई गलती नहीं होने पर उन्हें मानसिक बीमारियों से ग्रसित कर रहा है ।
जो आने वाले समय मे बेरोजगारी का सबसे बड़ा कारण बनके उभरेगा । अतः इस पर तत्काल गंभीरता से विचार करने की जरूरत है ।
(3) अगर कोई व्यापारी स्वकछा से E-इनवॉइस बनाना चाहता है तो उसे E -इनवॉइस बनाने का अधिकार दिया जावे चाहे उसका टर्नओवर ₹ 20 करोड़ से कम ही क्यो न हो ।
e- इनवॉइस पर भी ख़रीददार को ITC का लाभ नही देना पूर्णतः प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्त के विरूद्ध है व यह GST विभाग की अकर्मण्यता को दर्शाता है।
जब सब कुछ उधोग व व्यापार जगत को ही करना है तो विभाग का स्थापना व्यय पर करदाता के भारीभरकम पैसों को क्यो खर्च किया जा रहा है।
(4) जैसा कि हम सभी जानते है कि GST मे 1 July 2017 से 30 Jun 2022 तक सभी उत्पादक राज्यो को जो GST लागू करने से राजस्व की हानि होगी उसे केन्द्रीय पूल से कपंनसेशन गारंटी के रूप में राज्यो को जो राशि दी जा रही थी ,अब 1 जुलाई 2022 से यह राशि इन राज्यो को मिलना बंद हो जावेगी।
सुझाव
जैसा कि हम जानते है कि कोई भी उत्पादक राज्य राजस्व के मामले में आत्म निर्भर नही हो पाया है ।
उन्हें आत्म निर्भर बनाने व अपने अपने राज्य में उत्पादन गतिविधियों को बढ़ाने हेतु इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनायो में निवेश के लिये काफी बढ़ी राशि की जरूरत है तथा राज्यो में ओधोगिक उत्पाद के लिए निजी छेत्र से निवेश को आकर्षित करने के लिये सब्सिडी के रुप मे देने के लिये बढ़ी राशि की जरूरत है ।
अतः उत्पादक राज्यो को यह अधिकार मिले की वे अपने राज्य में उत्पादित वस्तुओं को केवल दूसरे राज्यों मे निर्यात के समय केवल उत्पादक/निर्माता 2% विकाश शुल्क IGST के अतरिक्त चार्ज कर सके । जिस पर केवल उत्पादक राज्य का अधिकार हो । यह सम्पूर्ण राशि केन्द्रीय पुल के बजाय प्रति माह उत्पादक राज्य जिन्हें वर्तमान में कंपनसेशन दिया जा रहा है दी जावे जिससे उत्पादक राज्य भी आत्म निर्भर बन सके ।
इस पर तत्काल गभीरता से विचार करने की जरूरत है ।
अगर ऐसा नही किया गया तो कोई भी उत्पादक राज्य अपने प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम उपयोग जान बूझकर नही करेगा । जिससे भारत की अर्थव्यवस्था एक बार पुनः आयात आधारित होने की प्रबल संभावना है।
इसका ताजा उदाहरण देश मे कोयले व आयरन ओर के पर्याप्त भंडार होने के बावजूद हमे विदेशो से बढ़ी मात्रा में कोयले का इम्पोर्ट करना पड़ रहा है ।