Saturday, July 6, 2024
HomeChhattisgarhRaipurRAIPUR NEWS : मुक्तिबोध:स्वदेश की खोज़, पुस्तक विमोचन के दौरान देश के...

RAIPUR NEWS : मुक्तिबोध:स्वदेश की खोज़, पुस्तक विमोचन के दौरान देश के नामचीन लेखकों को सुनने उमड़े लोग.

- Advertisement -

रायपुर. raipur news  ऐसा बहुत कम होता है जब साहित्य के किसी आयोजन में लोगों की अच्छी-खासी मौजूदगी देखने को मिलती है. सामान्य तौर पर साहित्यिक आयोजन में वे ही लोग उपस्थित रहते हैं जिनका कार्यक्रम से जुड़ाव रहता है या फिर बतौर वक्ता उन्हें अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होती है. पहली बार इससे उलट था. अभी इसी महीने 4 जून को जन संस्कृति मंच की रायपुर ईकाई द्वारा देश के प्रसिद्ध मार्क्सवादी विचारक राम राय की पुस्तक मुक्तिबोध:स्वदेश की खोज का विमोचन हुआ तो जितने लोग वृंदावन हाल के भीतर थे उतने ही लोग हाल के बाहर इस प्रतीक्षा में थे किसी तरह से एक गंभीर आयोजन का हिस्सा बन सकें. जन समुदाय की यह मौजूदगी सभी वर्ग और क्षेत्रों से थीं. इस मौके पर नवारुण प्रकाशन और जन संस्कृति मंच की तरफ से पुस्तक व पोस्टर प्रदर्शनी भी लगाई गई थीं. हिंदी पट्टी के किसी आयोजन में पुस्तकों की अच्छी-खासी बिक्री भी देखने को मिली.

कार्यक्रम की शुरुआत अजुल्का सक्सेना और वसु गंधर्व के गायन से हुई. दोनों ने मुक्तिबोध की कविता पर अपनी शास्त्रीय प्रस्तुति से सबका मन मोह लिया.

अपने स्वागत वक्तव्य में जन संस्कृति मंच की रायपुर ईकाई के अध्यक्ष आनंद बहादुर ने बताया कि जसम देश के सबसे महत्वपूर्ण लेखकों, और संस्कृतिकर्मियों का संगठन है. पिछली 3 मई को जब रायपुर ईकाई का गठन हुआ तब यह बात बेहद शिद्दत से उठी थीं कि सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाली राजनीति के विषैले-खतरनाक दौर में जब सबसे ज्यादा लेखकों और कलाकारों को मुखर होकर बोलने की आवश्यकता है तब वे खामोश हैं. जन संस्कृति मंच ने तय किया है कि वह जरूरी हस्तक्षेप जारी रखेगा. इस मौके पर मुक्तिबोध के पुत्र रमेश मुक्तिबोध, गिरीश मुक्तिबोध, दिलीप मुक्तिबोध के हाथों रामजी राय की कृति ‘मुक्तिबोध स्वदेश की खोज’ का विमोचन किया गया.

[shortcode-weather-atlas selected_widget_id=f03e2a1b]

इस अवसर पर कृति के लेखक राम राय ने मुक्तिबोध की कर्मभूमि छत्तीसगढ़ में पुस्तक के विमोचन को एक उपलब्धि बताया. उन्होंने कहा कि यदि समकालीन जनमत की प्रबंध संपादक मीना राय ने सुझाव नहीं दिया होता तो शायद किताब का विमोचन यहां रायपुर में संभव नहीं हो पाता. लेखक राम जी राय अपने वक्तव्य के दौरान बेहद भावुक भी हो उठे. उन्होंने कहा कि अगर मुक्तिबोध के समूचे लेखन को खोजने का काम रमेश मुक्तिबोध ने नहीं किया होता तो आज उनका समग्र लेखन हमारे सामने नहीं आ पाता. उन्होंने कहा कि फैंटसी भी यथार्थ को जानने का एक टूल होता है. सबकी अपनी-अपनी फैंटसी होती है न कि सिर्फ कलाकारों की. लेनिन ने कहा था… तुमने हथियार साधू से लिया या डाकू से ये महत्व नहीं रखता, इसका इस्तेमाल कहां करोगे ये मायने रखता है. उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध की भाषा पर भी काम होना चाहिए. उन्होंने कहा कि आजादी के समय से ही फासीवाद की झलक दिखने लगी थीं.आज फासीवाद अपने सबसे वीभत्स रुप में हमारे सामने हैं. फासीवाद को लेकर मुक्तिबोध की चिंता और अधिक जटिल यथार्थ की तरफ बढ़ रही है. हम केवल तर्कों से फासीवाद को हरा नहीं पाएंगे. इसे समझना होगा. इसके प्रतिवाद के लिए धरती पर कान लगाकर सुनना होगा.

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और देश के प्रसिद्ध कवि बसंत त्रिपाठी ने कहा कि मुक्तिबोध स्वदेश की खोज हमारे समय की जरूरी किताब है. उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध के समूचे लेखन को लेकर अलग-अलग तरह के निष्कर्ष निकाले जाते रहे हैं, लेकिन पहली बार राम जी राय ने अपनी पुस्तक में नई व्याख्या की है जिसमें मुक्तिबोध का प्रस्थान बिंदु, उनकी चिंतन धारा और उनकी सोच शामिल है.

छत्तीसगढ़ साहित्य परिषद के अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त ने कहा कि मूल्यांकन के बगैर आलोचना नहीं हो सकती और साहित्य का मूल्यांकन सिद्धांत के बगैर नहीं हो सकता. राम जी राय की यह किताब गहरी सैद्धांतिक बहस का पुर्नवास करती है. किताब मनोविश्लेषण और मार्क्सवाद के ताजा-तरीन सिद्धांतों के मार्फत मुक्तिबोध की फैटेंसी की अभिनव और बहस तलब व्याख्या को सामने लाती है.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रणय कृष्ण ने कहा कि मुक्तिबोध के काम और उनके मूल्यबोध से स्पष्ट आत्मीयता रख पाना बेहद जटिल है, लेकिन राम जी राय ने यह काम कर दिखाया है. उन्होंने किताब के भीतर मौजूद कई लेखों का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि नक्सलबाड़ी और खाड़ी देश सहित अन्य लेखों को पढ़कर आज के फासीवाद को समझने की नई दृष्टि विकसित होती है. उन्होंने कहा कि अंतःकरण जो मनोभाव मुक्तिबोध के पास है वह इस किताब में उपस्थित हैं. तत्व विकास, अभिव्यक्ति का संघर्ष. उन्होंने कहा कि अगर हिंदोस्तान में फासीवाद से लड़ना है तो व्यापक जनसंघर्ष की आवश्यकता होगी.

युवा आलोचक प्रेम शंकर ने मुक्तिबोध की रचनाओं के जरिए रामजी राय की पुस्तक की खास बातों को रेखांकित किया तो आलोचना के संपादक आशुतोष ने कहा कि इस किताब पर आने वाले समय में जबरदस्त चर्चा होगी. यह किताब बताती है कि मुक्तिबोध को कैसे और क्यों पढ़ा जाय. किताब मुक्तिबोध को लेखकों की राजनीति से अलग करती है. उन्होंने कहा कि फासीवाद से लड़ने के लिए संसदीय लोकतंत्र के बाहर जाने की जरूरत क्यों है इसे बेहद शिद्दत से इस किताब में महसूस किया जा सकता है.

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में आलोचक सियाराम शर्मा ने मुक्तिबोध को समय के पहले का कवि निरूपित किया. उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध संकट को पहचानते थे इसलिए अपनी कविताओं में प्रतिरोध भी रच देते थे. उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध की कविता हमेशा एक कार्यकर्ता बने रहने की मांग करती है चूंकि यह किताब भी जनता के लिए हैं इसलिए बेहद खास है. मुक्तिबोध जनता से बहुत प्यार करते थे. हम चाहे कहीं भी चले जाए। अंत में हमको जनता के पास जाना ही होगा. जनता के पास ही सभी समस्याओं का समाधान है. उसमें अग्नि,उष्मा व प्रकाश विद्यमान है.

कार्यक्रम का सफल संचालन युवा आलोचक भुवाल सिंह ने किया जबकि जन संस्कृति मंच के सचिव मोहित जायसवाल ने आभार जताया. इस दौरान बड़ी संख्या में साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी मौजूद थे.

Hindi News के लिए जुड़ें हमारे साथ हमारे
फेसबुक, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम, और वॉट्सएप, पर…

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments