
जगदलपुर। बस्तर में सियासी संग्राम शुरू हो चुका है और इस बीच राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को लेकर भी आरोप प्रत्यारोप पद और जारी है। सिलसिलेवार जिस तरह से 2018 के बाद से भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की हत्या हो रही है। इससे भाजपा के नेता नक्सल प्रभावित इलाकों में काम करने में कैसा है महसूस कर रहे हैं। सवाल यह भी उठ रहा है कि नक्सलियों के निशाने में भारतीय जनता पार्टी के नेता ही क्यों हैं। हालांकि कांग्रेस नेताओं का कहना है इन हत्याओं को भाजपा सियासी मुद्दा बना रही है, जबकि नक्सली हत्या कांग्रेसियों की भी होती रही है।
बीजापुर के कुटरु में भारतीय जनता पार्टी के नेता रमेश गोटा की अपहरण कर हत्या की कोशिश के मामले में फिर सियासत गरमा गई है। चार महीने पहले ही अमित शाह के दौरे के दौरान भारतीय जनता पार्टी के कुटरु मंडल के नेता को भी नक्सली धमकी मिली थी, जिसके बाद उसने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इधर रमेश गोटा के अपहरण के बाद से फिर भाजपा नेता अपने कार्यकर्ताओं की हत्या को लेकर चिंतित दिखाई दे रहे हैं। बीजापुर में सिलसिलेवार भारतीय जनता पार्टी के नेता कार्यकर्ता नक्सली निशाने पर हैं।
4 नेताओं की हत्या
साल भर में ही 4 नेताओं की हत्या बीजापुर में हो चुकी है। 4 मार्च 2023 को रामा कड़ती की हत्या की गई थी 30 मई 2023 को भाजपा कार्यकर्ता महेश कड़ती की हत्या की गई थी। इसी तरह अर्जुन काका को 21 जून 2023 और नीलकंठ कककेम को इसी साल इलमिडी में बेरहमी से मारा गया था। 2018 में भी भाजपा युवा मोर्चा के जिला अध्यक्ष जगदीश कोंडरा की सरेआम भोपालपटनम में हत्या कर दी गई थी। इससे पहले महेश गगडा के विधायक रहते उनके काफिले पर विस्फोट किया गया था। बीजापुर जिले में ही भाजपा नेताओं पर हमले का सिलसिला लंबे समय से जारी है दूसरी तरफ नारायणपुर में भी साल भर पहले भाजपा नेता की हत्या की गई थी।
इन घटनाओं के बाद से भारतीय जनता पार्टी को नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं को जताने में मुश्किलें पेश आ रही हैं। भाजपा नेताओं का आरोप है कि यह हत्याएं राजनीतिक हैं और कांग्रेस के संरक्षण में हो रही हैं। इधर कांग्रेस नेताओं का कहना है कि इस मामले में भारतीय जनता पार्टी सियासत कर रही है। कांग्रेस के नेताओं पर भी बड़े हमले हो चुके हैं भाजपा नेताओं पर क्यों हमले हो रहे हैं इसकी वजह दूसरी है फिर भी सुरक्षा को लेकर पुलिस मैं सभी को अलर्ट किया है। इस मामले में पुलिस का कहना है कि नक्सल क्षेत्रों में सॉफ्ट टारगेट को निशाना बनाकर माओवादी प्रचार हासिल करना चाहते हैं.