Friday, July 5, 2024
HomeChhattisgarhBIG NEWS : छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की आदिवासियत को ही खत्म किया...

BIG NEWS : छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की आदिवासियत को ही खत्म किया जा रहा

- Advertisement -

 

जनता के सवालों पर दो दिवसीय छत्तीसगढ़ जन अधिवेशन की शुरुवात आज दिनांक 24 तारीख से आशीर्वाद भवन रायपुर में हुई। अधिवेशन की शुरुवात करते हुए। सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक व पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम जी ने कहा कि आज सबसे बड़ी चिंता की बात है आदिवासियों के जंगल जमीन की लूट बदस्तूर जारी है। पार्लियामेंट में कानून तो बनते है लेकिन सरकारें उनका पालन नही करती बल्कि इसके विपरित कार्य करती हैं। पेसा और वनाधिकार कानून के साथ भी यही हुआ है। छत्तीसगढ़ सरकार ने पेसा नियम तो बनाए लेकिन उसमे कानून की मूल आत्मा को ही खत्म कर दिया है।

प्रथम सत्र स्वशासन पर बोलते हुए भारत जन आंदोलन के बिजय भाई ने कहा कि देश में लोकतांत्रिक शासन के ढांचे में असमानता व्याप्त है। आम राजनीति का केंद्र बिंदु केंद्र व राज्य सरकार होती है, जबकि देश में संघीय व्यवस्था है, जहां एक संघीय सरकार है और प्रदेशों में राज्य सरकार, और जिलों में जिला सरकार होना चाहिए। आज की कांग्रेस भी भारत की शासन सरंचना की विकेंद्रित व्यवस्था की वकालत करते हुए नारा दिया था : “मैक्सिमम गवर्नेंस , मैक्सिमम डिवोल्यूशन” यानि अधिकतम शासन के लिए अधिकतम सत्ता। आज कांग्रेस विकेंद्रीकरण के इस नारे को भुला चुकी है।

[shortcode-weather-atlas selected_widget_id=f03e2a1b]

आदिवासी जन वन अधिकार मंच के केशव शोरी ने बताया कि नारायणपुर जिला लौह अयस्क के ढेर पर बैठा है जिसे हड़पने के लिए आदिवासी संस्कृति, पहचान और उनके हकों को कुचला जा रहा है। इस हेतु अधिकार आधारित कानूनों का उल्लंघन और अर्धसैनिक बलों का दुरुपयोग किया का रहा है।

दलित आदिवासी मंच

दलित आदिवासी मंच की राजिम बहन ने कहा की वनाधिकार प्राप्त भूमि पर प्लांटेशन व तारबंदी की जा रही है। महिलाएं वहां से वनोपज नहीं ला पाती। महिलाओं के वनाधिकार को माना नहीं जाता। दावे साबित करने वर्ष 2005 के पहले के सबूत मांगे जाते है, लेकिन आदिवासियों पर वन विभाग ने बहुत अत्याचार किए है, और उसके सबूत नहीं रखे है। अब बहुत कम PoR के रिकार्ड रखे गए हैं, जिसे साक्ष्य के रूप में मिलते हैं।

दूसरे सत्र

दूसरे सत्र में खेती किसानी और किसानों की गंभीर स्थिति पर चर्चा हुई। कॉमरेड संजय पराते, शौरा यादव सुदेश टीकम ने किसानों की स्थिति पर रिपोर्ट पेश की।

कॉमरेड संजय पराते ने बताया कि देश में प्रति लाख किसान परिवारों पर सबसे ज्यादा औसतन चालीस प्रतिशत आत्महत्याएं छत्तीसगढ़ में हो रही हैं। जो गहरे कृषि संकट की अभिव्यक्ति है। बढ़ती लागत व घटती आय से किसान ऋणग्रस्त हैं। उनकी जमीनें विकास परियोजनाओं के नाम पर गैर कानूनी तरीके से छीनी जा रही हैं।

सुदेश टीकम ने इस स्थिति से निपटने के लिए आत्म -निर्भर किसानों की एकजुटता पर जोर दिया धान के किसान व वन के किसानों को एक साथ आने की जरूरत पर बल दिया ताकि सरकार की कार्पोरेट परस्त नीतियों के खिलाफ लड़ा जा सके।

तीसरे सत्र

तीसरे सत्र दमन पर बोलते हुए पर बस्तर जन अधिकार समिति के अध्यक्ष रघु ने कहा कि बस्तर में जो भी आदिवासी अपने अधिकार के लिए आवाज उठा रहे है उन्हे प्रताड़ित किया जाता है। मुख्यमंत्री से तीन बार मुलाकात किए । डेढ़ महीने में न्याय देने की बात की थी दो साल हो गए है लेकिन न्याय नही मिला।

वकील शालिनी गेरा ने कहा कि बस्तर में बीज पंडुम मनाते हुए निर्दोष आदिवासियों की फर्जी मुठभेड़ की घटनाओं की जांच और आयोग के लिए कांग्रेस ने खूब आंदोलन किया। आज जब दोनो रिपोर्ट आ चुकी है तो उन पर कार्यवाही की बजाए रिपोर्ट को ही दबा दिया गया था। इंडियन एक्सप्रेस में रिपोर्ट लीक होने के बाद इसे विधानसभा के पटल पर रखा गया।

सरजू टेकाम ने कहा कि बस्तर में हमारी निजता, स्वतंत्रता पर हमला हो रहा है। आदिवासियों ने कभी अंग्रेजी राज स्वीकार नहीं किया तुम्हारा कांग्रेस और भाजपा का राज तो स्वीकार्य नही करेंगे।
बस्तर में माओवादी होना जरूरी नहीं है, यहां पुलिस की गोली खाने के लिए आदिवासी होना ही काफी है। क्या संविधान हमारे लिए नहीं है? दरअसल आदिवासियों की आदिवासियत को ही बस्तर में खत्म किया जा रहा है। भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश हो रही है लेकिन जब तक एक भी आदिवासी जिंदा है इस देश को हिंदू राष्ट्र नहीं बनाया जा सकता है।

दिल्ली विश्व विद्यालय

दिल्ली विश्व विद्यालय की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर ने कहा कि बस्तर में तीन तरह से आदिवासियों पर दमन हो रहा है। उनके अस्तित्व और पहचान पर हमला हों रहा है उनका हिंदूकरण किया जा रहा है। जिस spo को सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंधित किया नाम बदलकर बस्तर के आदिवासियों को बंदूक थमाई गई हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया ने कहा कि – बस्तर में 2005 से 2018 तक बस्तर में भयानक दमन और नरसंहार हो चुका था। इस परिस्थिति में भूपेश बघेल जी ने कहा था कि बस्तर में शांतिपूर्ण संवाद के गंभीर प्रयास किए जाएंगे लेकिन कुछ भी नही हो रहा है । बस्तर को अंधाधुंध सैन्यीकरण में धकेला जा रहा है।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments