
*गांवों के संयुक्त परिवारों के एकल परिवार में विगठन के पीछे पूर्ण रूप से राजनीतिक ताकते है । जो परिवारों को वोट बैंक के लिये विभिन्न प्रकार के सरकारी प्रलोभन दे रही है ।*
साथ ही सरकार की सामाजिक न्याय व खाद्य सुरक्षा के तहत मिलने वाला अनाज व आर्थिक मदद की नीतियां भी जिम्मेदार है ।
वर्तमान में नीतियां प्रति परिवार के हिसाब से संचालित की जाती रही है ।
जो पूर्णत: अनुचित है । जो केवल भ्रटाचार को जन्म देने के साथ साथ हमे हमारे संस्कारो से दूर कर रही है ।और समाज को केवल देखावे की जिंदगी के लिये कर्ज आधारित जिंदगी जीने की ओर धकेल रही है ।
*सुझाव*
*सभी सरकारो को चाहिये की वर्तमान में संचालित सभी सरकारी नीतियों को प्रति परिवार की बजाय परिवार के सदस्यों की संख्या के आधार पर हो ।*
*जैसे किसी परिवार में 5 शादी शुदा भाई अपने 2 – 2 बच्चों के साथ अपने माता पिता के साथ एक ही मकान में रह रहे है और यह परिवार गरीबी रेखा के नीचे की श्रेणी में है तो उसे 6 परिवारों के बराबर सरकारी अनुदान व खाद्यय सुरक्षा के तहत मिलने वाला अनाज मिलना चाहिये ।* न कि एक परिवार के हिसाब से
*ऐसा कर हम गांवों में गरीब व किसानों के संयुक्त परिवारों के विगठन को रोक सकते है। तथा गाँवो में परिवारों के विगठन के कारण दिन प्रति दिन खेती की जोत का साइज कम हो रहा है और जमीन छोटी होने के कारण खेती के लिये लाभ दायक नही बचती है ।*
अतः सभी सरकारी सामाजिक न्याय योजना के तहत दी जाने वाली आर्थिक मदद व खाद्यय सुरक्षा योजना के तहत दिया जाने वाले अनाज की नीतियों में जरूरी बदलाव व समावेश करने की जरूरत है ।